आज से दो हजार वर्ष पूर्व इंद्रप्रस्थ नामक जंगल सबसे बङा और घना था। इस विशाल और बीहङ जंगल की ख्याति दूर – दूर तक फैली थी। उस जंगल की महारानी शेरनी थी। इंद्रप्रस्थ जंगल के शेर की मृत्यु के बाद वहां के जीव – जंतु की सुरक्षा और देखभाल की जबाबदेही उस पर आ गई थी। जिसे उसने बेहद सफलता से निभायी। उसकी बूढ़ी मसें आज भी आपत स्थिति में वैसे ही तनती, जैसे जवानी के दिनों में। दुश्मनों पर वह बिजली की भांति गति से झपटती थी। आज भी उसकी चपलता में कोई कमी नहीं आयी थी। वह इंद्रप्रस्थ का साम्राज्य ऐसे संभाल रही थी जैसे जन्म से ही यह हुनर सीख कर आयी हो।
एक दिन उसने अपने दोनों जवान और लायक बेटे सुलतान सिंह शेर और मुलतान सिंह शेर को बुलाया और कहा – जब – तक तुम्हारे पिता जिंदा रहे, उन्होंने “इंद्रप्रस्थ खेल – कूद प्रतियोगिता” का सफल आयोजन किया। उनकी मृत्यु के बाद से यह आयोजन स्थगित है। अब तुम दोनों जवान हो गए हो, आगे तुम्हें ही इस साम्राज्य को संभालना है। इसलिए मैं चाहती हूं कि अब तुमलोगों के सहयोग से इस खेल प्रतियोगिता को फिर से शुरु की जाए। सुलतान और मुलतान को यह सुझाव पसंद आया। उसने तुरंत हामी भर दी। साथ ही कहा कि मंत्रीमंडल के अन्य सदस्यों को बुलाकर मीटिंग कर ली जाए। शेरनी बेटे के उत्साह और रुचि से खुश होकर मीटिंग की तारीख तय कर दी।
शेरनी ने शाही तख्त पर बैठते ही मीटिंग की कार्यवाही शुरु करने की आदेश दी। महामंत्री जगत सिंह लोमङी ने खङे होकर सुझाया कि खेल के दिनों में जंगल की सुरक्षा एक अहम पहलू होगा। चूंकि हमारे दोनों युवराज खेल आयोजन में जुटे होंगे तो सुरक्षा का भार कौन संभालेगा? अभी तक तो यह स्थिति है कि युवराज के डर से परिंदे और उल्लू तक हमारे इलाके में घुसने से डरते हैं। फिर भी धोखे से चार बङे हमले हो चुके हैं। और खुफिया तंत्र की रिपोर्ट है कि दुश्मन घात लगाये बैठे हैं। वे कभी भी किसी बङी घटना को अंजाम दे सकते हैं। चूंकि हमारा जंगल सबसे बङा और विशाल है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से असुरक्षित भी। दुश्मनों के पास तेज हथियार हैं, फिदाईन भी। इसलिए इन पहलुओं पर गौर कर लिया जाए। महामंत्री के बैठते ही धंधू कुत्ता अपनी दूम हिलाते और लार टपकाते हुए बोला – शेर सिंह के जमाने भी ये तर्क उठते थे लेकिन सफल आयोजन हुआ। तब वे अकेले देखते थे लेकिन आज हमारे पास दो युवराज हैं। हमारी ताकत दुगूनी है। युवराज के डर से सारे जंगल में ऐसा सन्नाटा छाता है कि पत्ते तक नहीं हिलते। धंधू की तरह कई चापलूस मंत्रालय में भरे थे उन्होंने नम्बर बढ़ाने के लिए हां में हां मिलाना शुरु कर दिया। कौवे ने भी कांव – कांव कर हामी भरी। युवराज का सीना गर्व से फुला जा रहा था लेकिन उसने जाहिर होने नहीं दिया।
अब बारी भालू कल्लू दादा की थी। कल्लू दादा ने कहा खेल प्रतियोगिता से पहले संबंधित बजट पर गौर कर लिया जाए। खजाने की हालत तो ठीक है। रेवन्यू की वसूली भी पिछले वर्षों की तुलना में तीन गुणा है लेकिन प्रतियोगिता का भार नहीं संभाल पायेगी। मगरमच्छों, बत्तखों और घङियालों की प्रतियोगिता के लिए नये तालाब बनाने पङेंगे। ऊंटों की प्रतियोगिता के लिए रेगिस्तान का निर्माण करना होगा। इसके लिए काफी बालू लाना होगा। बकरियों के लिए घास का मैदान तैयार करना होगा। आखिर वे “घास चर” प्रतियोगिता में ही तो भाग लेंगी। ऐसी स्थिति में बङे पैमाने पर जंगल को काटना पङेगा जो कि पर्यावरण और सुरक्षा दोनों दृष्टियों से ठीक नहीं है। इतनी बर्बादी के बाद हम रहेंगे कहां? फिर बाघ, चीतों और शेरों की प्रतियोगिता में तो पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा जायेगी। उनके खाने के लिए जिंदा बकरी, भेङ, हाथी, हिरण, लोमङी आदि कहां से लाये जायेंगे? फिर अपने जीव – जंतु की सुरक्षा का भी सवाल है। अलग – अलग सवाल और मुद्दे उठते रहे। बहसें तेज होने लगी।
सुलतान और मुलतान के नथुने फुलने लगे। सांसे तेज होने से गुर्राहट निकलने लगी। अचानक महारानी शेरनी की दहाङ से खामोशी छा गयी। शेरनी ने कहा – मैंने खेल के आयोजन का फैसला ले लिया है, अब यह बदलेगा नहीं। यह मेरी पूंछ का सवाल है। इसलिए आपलोग सिर्फ आयोजन को सफल बनाने के लिए अपने विचार रखें। इस प्रतियोगिता से दुनिया के तमाम जंगलों में हमारी धाक जमेगी। बाहरी प्रतियोगी के आने से हमारे बाजार विकसित होंगे। हमारा जंगल इतना सुन्दर हो जाएगा कि वह दुनिया के लिए सबसे खुबसूरत पर्यटन केंद्र बन जाएगा। धन की कमी नहीं होने दी जायेगी। तमाम संसाधन और जरुरी चीजें जुटा ली जायेगी। आपलोग जोरशोर से तैयारी में जुट जायें।
तभी बुद्धिमान सुजान सिंह हाथी ने खङे होकर महारानी को समझाने की कोशिश की। कहा – महारानी मैं मंत्रीमंडल के नये सदस्यों के उत्साह और जोश की कद्र करते हुए कहना चाहता हूं कि चापलूसों से सावधान रहने की जरुरत है। उनकी बात भी ध्यान से सुननी चाहिए जो आयोजन की परेशानियां बता रहे हैं और हां में हां नहीं मिला रहे। उनकी असहमति में दम है। आज से बीस वर्ष पहले जब आयोजन हुआ था तब ये सदस्य पैदा भी नहीं हुए थे। उन दिनों भी आयोजन में काफी परेशानियां उठानी पङी थी। कानून और व्यवस्था चरमरा गयी थी। तब जबकि आयोजन महज तीन जंगलों तक सिमटा था। महामंत्री ने ठीक फरमाया है कि हम लगातार हमलों के शिकार होते रहे हैं। सीमा पर स्थिति अच्छी नहीं है। मैं आंकङे देकर बता सकता हूं कि पिछले दिनों जंगल से हजारों कि संख्या में बकरी ,गाय, हिरण, नीलगाय, बैल आदि गायब हुए हैं। सीमा के अंदर और बाहर हडिड्यों का ढेर मिला है। सैंकङों चीतों के झूंड ने हमारे सुरक्षाकर्मियों को घायल कर दिया था। हाथियों के झूंड ने जंगल का एक कोना ही उजाङ दिया है। घुसपैठिए लोमङी और भेङिए हमारे शावक को उठाकर भाग रहे हैं। खेलों के दरम्यान क्या होगा यह विचारणीय है। फिर सबके भोजन का प्रबंध...। उसका तो भगवान ही मालिक है। उत्पादन इतना कम है कि अपने ही लोगों का भोजन कम पङता है। एक दिन में एक शेर को तीन जिंदा बकरी चाहिए ये सब इंतजाम कहां से होगा? उचित प्रबंध के अभाव में इन्होंने अपने लोगों पर हमला कर दिया तो? बाहरी सुरक्षा के साथ – साथ आंतरिक सुरक्षा पर भी गौर करना चाहिए।
कुत्ते की भों – भों और कौवे के कांव – कांव की आवाज इतनी तेज थी कि सुजान सिंह हाथी की पूरी बात सुनी नहीं जा सकी। अपने चापलूसों और दूम हिलाऊ कुत्ते से घिरे शेरनी ने यह फरमान जारी कर मीटिंग समाप्त कर दी कि खेल का आयोजन होगा और तमाम कमियों को दूर कर लिया जायेगा। समय पर सारे काम निपटा लिये जायेंगे।
सुजान सिंह हाथी दादा ने अपनी बुढ़ाती आंखों के सामने देखा कि खेल प्रतियोगिता समाप्त होते – होते जंगल जरुर खुबसूरत हो गया लेकिन अपने संगी साथी सभी छूट गये। बकरी, भेङ, नीलगाय, हिरण आदि शेर, चीतों और बाघों के भोजन बन गए। नदियों से सोनमछरी गायब थी और वहां मगरमच्छों की चहलकदमी थी।
( समाप्त )
1 टिप्पणी:
राजकुमार जी इन्द्र्प्रस्थ में खेलों की यह परंपरा बहुत प्राचीन है. वैदिक समय पुरानी . मुझे व्यंग्य पढ कर अच्छा लगा , खूब ही उपभोग और उपयोग किया. सामयिक के साथ साथ अतीत पर भी ऐसा लिखिए.
एक टिप्पणी भेजें