बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

‘अधूरा इतिहास’

       अरुणाकर पाण्डेय युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। गंभीरता के साथ – साथ भाषायी खिलंदङेपन में आपको महारत हासिल है। नयी विचार शैली और भाषा के नये प्रत्ययों का इस्तेमाल इनकी लेखनी में आसानी से पकङा जा सकता है। आपने पहले भी ‘अमरबेल’ के लिए कई रचनाएं भेजी हैं। इस बार ‘अधूरा इतिहास’ कविता----------

दो पुस्तकों के बीच
द्वन्द्वात्मक होता समय
बहता है कुछ इस तरह
कि साइबेरिया के पंछी
मौसम लौटने पर वापस न आयें
और हम सोचते रहें
उनके विस्थापन पर बार-बार !

हाथ में चाय का गिलास लिए
पूछते हैं पूर्वजों के संगी
चाँद से,
जो नहीं लगता बादशाह की
अंगूठी का नगीना
याकि सुलगती बीड़ी के आखिरी कश सरीखा

किन्तु लौट जाता है
वह भी
आज के दोस्त की तरह
अनुत्तरित
रोज़ सबेरे |
                                        


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

mitra naye blog kee badhai. Lekin ye to bataie kee kyon apna aur dunia ka samay barbad kar rahe ho? Koi uddeshya to saaf hona chahiye.
Bakvaas.