यदि आजकल अपराध मीडिया के स्थायी भावों में से एक है,तो उसके सामाजिक – सांस्कृतिक आधार भी मिलते हैं | लेकिन घटनाएं और ख़बरें जब ऐसी आने लगें कि सड़क पर गोली मारने का कारण ओवरटेकिंग हो या फिर पार्किंग का विवाद,तो ऐसे में इस नतीजे पर पहुँचना कि हम लगभग सामंती हो चले हैं,अतिशयोक्ति नहीं हो सकता | वैसे तो ऐसी घटनाओं कि ख़बरें प्रकाशित होती ही रहती हैं,लेकिन चंद दिनों पहले दिल्ली के मयूर विहार में एक बस चालक ने एक कार चालक के कंधे पर इसलिए गोली चला दी,क्योंकि कार ने बस को ओवरटेक कर लिया था | एक समय हिंदी के एक कवि नागार्जुन ने एक बस ड्राईवर के चरित्र पर एक कविता लिखी थी और यह बताया था कि उसने बस के गियर पर अपनी बेटी के लिए हरे कॉच की चूडियाँ लटका रखी थीं,जिससे उसके वात्सल्य भाव के प्रति पाठक के मन में जगह बनी थी |लेकिन गोली मरने वाले ड्राईवर की खबर तो धीरे – धीरे साधारण मनुष्य के अराजक तथा बर्बर होने की कहानी कहती है | उस बस ड्राईवर के पास हथियार का होना अपने आप में बहुत आश्चर्य का विषय तो है ही,लेकिन उससे राह चलते किसी भी नागरिक अथवा व्यक्ति का गैरसंवेदंशील अपराधी प्रवृत्ति का होना मन में असुरक्षा बोध और भय को ही जन्म देता है |यदि एक बस ड्राईवर के पास हथियार रखने और उसके दुरूपयोग का माद्दा हो सकता है, तो वह फिर किसी के पास भी हो सकता है |
यदि मीडिया पर ही भरोसा किया जाय ,तो वो ऐसी मानसिकता के विकास और उसके प्रति सजगता, दोनों के ही नज़रियों को पोषित करता है | उसने सड़क पर बढ़ती हुई रफ़्तार,गेजेट्स के बढ़ते हुए उपयोग,बेशुमार ताकत तथा सुविधाओं वाली गाड़ीयों के साथ ऐसे मेगाहिट चरित्र भी अचैतनिक रूप से दर्शक-पाठक –श्रोता में पिरोये हैं की उससे अपराध भी ग्लेमरस हो, लाइफस्टाइल की तरह कुछ स्थापित हो चला है | आज का उपभोक्ता-नागरिक इसे स्वतंत्रता के अधिकार, सेक्स अपील तथा हीरोइज़्म के रूप में देखता है, और इसे सत्तात्मक बनाता है | वर्चुअल की छद्म सफलता की उपस्तिथि उसे उद्वेलित तथा आंदोलित करती है , कि वह उसे अपने अद्यतन आदर्श की तरह स्वीकार करे, क्योंकि यही वह स्वाद है जो उसे सर्वश्रेष्ठ घोषित करेगा, उसे स्टेटस सिंबल प्रदान करेगा | कहने की आवश्यकता नहीं है कि अंततः यह हिंसा की जड़ो को मजबूत करने का अप्रस्तुत माध्यम है | इस बाबत ‘जेम्स बौंड’,’फास्ट एंड फ्यूरियस’,’ट्रांसपोर्टर’,’धूम’,’डान’ तथा ऐसे ही अनेक उदहारण गिनाए जा सकते हैं | इन चरित्रों की लोकप्रियता तथा लगातार मीडिया द्वारा इनका प्रस्तुत किया जाना जन समाज में इन्हें स्थाइत्व प्रदान करता है | ’ट्रांसपोर्टर’ के नायक के लिए तो उसकी गाड़ी ही हथियार का काम करती है और इसके तीसरे संस्करण में वह उसी लड़की से भावनात्मक एवं शारीरिक सम्बन्ध बनाता है जो मंत्री की बेटी है और स्थानान्तरित करने का माल भी | इसी फिल्म में वह अपनी संयंत्र गाड़ी से ही रेलगाड़ी पर भी प्रहार करता है और फिल्म के विलेन का भी काम तमाम करता है | यहाँ अपराध फैशन और स्टाइल की मानसिकता को बढ़ावा देता है और हमारी असल दुनिया में इसका यह प्रभाव पड़ सकता है की बस चालक द्वारा गोली चलाने जैसे परिणाम सामने आते हैं | कहने का अभिप्राय यह नहीं कि मीडिया द्वारा प्रायोजित ‘रफ़्तार’ का साधारण मनुष्य पर कोई कार्य – कारण जैसा प्रभाव पड़ता है,अपितु वह तो पोषक का काम करती है, जिससे ऐसी मानसिकता बनने में मदद ही मिलती है |
आपराधिक प्रवृत्तियों के सांस्कृतिक आधार को पोषित करने में जहां मीडिया सहभागी बनता है, वही पर वह उसे नियंत्रित भी करना चाहता है | उसके प्रति मीडिया सजगता भी पैदा करता है, लेकिन वह उसे मानसिक रूप से मिटा नहीं सकता | अंततः यह उसके लाभ में नहीं है, और मार्केटवादी मीडिया व्यवस्था में तो कतई नहीं | यही कारण है कि जहाँ वह रफ़्तार और अपराध से सम्बंधित सामग्री प्रसारित करता है, तो भयंकर परिणामों को भी उसी रोचकता से सराबोर कर प्रस्तुत करता है |
विदेशी एक्शन चैनलों पर अक्सर कुछ ऐसी विडियो का संग्रहण प्रस्तुत किया जाता है जिसमे मदहोश या अपराधी कार चालक बहुत तेज रफ़्तार से अपनी गाड़ी भगा रहे होते हैं, और वहाँ कि पुलिस अपनी पूरी ताकत और यंत्रों सहित उनका पीछा लाइव कमेंट्री के साथ कर रही होती है | इसमें अक्सर ऐसे दृश्य आते हैं जिनमे अपराधी अपनी गाड़ी बेतहाशा भगाते हैं | कभी वे गलत दिशा में गाड़ी भगाते हैं, तो कभी कई गाड़ियों से टकराने के बादवजूद भी वे रुकने का नाम नहीं लेते और भागते चले जाते हैं | इस भागमभाग में कई बार हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है तो शहर के ऊपर कैमरे से लैस हेलीकाप्टर भी मंडराते हुए दिखते हैं| इस समूची कार्यवाही कि रिकॉर्डिंग और कमेंट्री साथ – साथ हो रही होती है | अंततः चालक या अपराधी पकड़ा ही जाता है और इसे पुलिस कि विजय भंगिमा का पुट दिया जाता है | इसके लिए अक्सर अपराधी द्वारा दोनों हाथ उठाकर समर्पण के प्रतीक के रूप में दर्शाया जाता है, और संदर्भित पुलिस अधिकारियों के विश्लेषण व अनुभव के साथ प्रस्तुत किया जाता है | यहाँ पर यही संदेश दिया जाता है कि चालक या अपराधी कितना ही चालाक या तेज – तर्रार हो, वह कानून या पुलिस की हदों से बाहर नहीं है | संभव है कि किसी दिन ऐसे मदहोश या अपराधी चालकों,मीडिया और पुलिस के सहयोग से इस प्रकार की रिएल्टी हमाए यहाँ भी निर्मित हो ने लगे | लेकिन यह विश्लेषण हमेशा नदारद रहता है कि जिस सन्देश को रोचकता और कौतूहल के साथ दर्शक के लिए रियल्टी के माध्यम से निर्मित किया गया है, उसके मूल में वही वर्चुअल ऊर्जा है जो अक्सर यह कहती सुनाई पड़ती है कि डान का इन्तज़ार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है, लेकिन एक बात समझ लो, डान को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है |
विदेशी एक्शन चैनलों पर अक्सर कुछ ऐसी विडियो का संग्रहण प्रस्तुत किया जाता है जिसमे मदहोश या अपराधी कार चालक बहुत तेज रफ़्तार से अपनी गाड़ी भगा रहे होते हैं, और वहाँ कि पुलिस अपनी पूरी ताकत और यंत्रों सहित उनका पीछा लाइव कमेंट्री के साथ कर रही होती है | इसमें अक्सर ऐसे दृश्य आते हैं जिनमे अपराधी अपनी गाड़ी बेतहाशा भगाते हैं | कभी वे गलत दिशा में गाड़ी भगाते हैं, तो कभी कई गाड़ियों से टकराने के बादवजूद भी वे रुकने का नाम नहीं लेते और भागते चले जाते हैं | इस भागमभाग में कई बार हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है तो शहर के ऊपर कैमरे से लैस हेलीकाप्टर भी मंडराते हुए दिखते हैं| इस समूची कार्यवाही कि रिकॉर्डिंग और कमेंट्री साथ – साथ हो रही होती है | अंततः चालक या अपराधी पकड़ा ही जाता है और इसे पुलिस कि विजय भंगिमा का पुट दिया जाता है | इसके लिए अक्सर अपराधी द्वारा दोनों हाथ उठाकर समर्पण के प्रतीक के रूप में दर्शाया जाता है, और संदर्भित पुलिस अधिकारियों के विश्लेषण व अनुभव के साथ प्रस्तुत किया जाता है | यहाँ पर यही संदेश दिया जाता है कि चालक या अपराधी कितना ही चालाक या तेज – तर्रार हो, वह कानून या पुलिस की हदों से बाहर नहीं है | संभव है कि किसी दिन ऐसे मदहोश या अपराधी चालकों,मीडिया और पुलिस के सहयोग से इस प्रकार की रिएल्टी हमाए यहाँ भी निर्मित हो ने लगे | लेकिन यह विश्लेषण हमेशा नदारद रहता है कि जिस सन्देश को रोचकता और कौतूहल के साथ दर्शक के लिए रियल्टी के माध्यम से निर्मित किया गया है, उसके मूल में वही वर्चुअल ऊर्जा है जो अक्सर यह कहती सुनाई पड़ती है कि डान का इन्तज़ार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है, लेकिन एक बात समझ लो, डान को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है |
- डॉ. अरुणाकर पाण्डेय
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