गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

ग़ज़ल

हिन्दी के महान लेखक रघुवीर सहाय को हम उनके ग़ज़लों के लिए नहीं याद करते। आज उनकी बींसवी बरसी पर अमरबेल आपसे एक ग़ज़ल साझा करता है ----------

खोल दो अब द्वार प्रेयसि, प्रात का
मुक्त हो बन्दी अभागिन रात का।
जानता हूं किस लिए बिखरा तिमिर
क्योंकि खिलता था ह्रदय जलजात का।
तप्त है ज्वर से उजाले का बदन
उष्ण है स्पर्श तेरे गात का।
प्रीत की वह रीत पिछ्ली भूल जा
यह नहीं अवसर निठुर आघात का।
कौन कहता है कहानी प्यार की,
यह तुम्हें उत्तर तुम्हारी बात का।