शनिवार, अगस्त 13, 2011

जादुई यथार्थ का महानायक

      अपने जादुई यथार्थवाद से चमत्कृत करने वाले नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्व प्रसिद्ध लेखक गाब्रिएल गार्सीया मार्केस हिन्दी पाठकों के लिए अनजान नहीं हैं। लेकिन हिन्दी में उनकी रचनाओं या उन पर लिखी आलोचनात्मक पुस्तकों का अभाव सा रहा है। तब जबकि दुनिया की अन्य भाषाओं में मार्केस की रचनाओं का अनुवाद एक आंदोलन की तरह प्रकाशित की जाती रही है। प्रभात रंजन ने मार्केस की रचनात्मक उपस्थिति, यायावरी जीवन संघर्ष, पत्रकारीय जीवन के साथ – साथ लगभग उनकी जीवनी का बहुलांश ही ‘मार्केस की कहानी’ में लिख दिया है।
मार्केस से संदर्भित हिन्दी में यह एक ऐसी मुक्कमल पुस्तक है, जो न सिर्फ उसके लेखन को समेटता है बल्कि उसके बचपन, शिक्षा – दीक्षा, कैरियर, पत्रकार के रूप में संघर्ष और पहचान, महान लेखक बनने के लिए देखे जाने वाले सपने और उसके भीतर चल रही सृजनात्मक कशमकश तथा संघर्ष, एक सफल लेखक का जीवन और लेखन, पसंद – नापसंद सबको दर्ज करता है। यहां तक कि उनके जीवन में औरतों की भूमिका का भी जिक्र है जो कि हिन्दी के पाठकों के लिए अलग अनुभव और दृष्टि साबित होंगी। अमूमन हिन्दी में स्त्री पात्रों पर लेखन होता रहा है लेकिन लेखक के जीवन में कितनी प्रेमिकाएं और पत्नियां आयीं स्वतंत्र लेख के रूप में जिक्र नहीं मिलता है। प्रभात रंजन ने मार्केस की लिखी आत्मकथा, उपन्यास, कहानियां, अन्य रचनाएं, साक्षात्कार के अलावा उन पर लिखी गेराल्ड मार्टिन की जीवनी – लेख आदि का भी सहारा लिया है। 
प्रभात शुरुआत में ही यह प्रश्न उठाते हैं कि उनके साहित्य की रहस्यमयी, लगभग अविश्वसनीय – सी दिखाई देने वाली इस दुनिया की कोई वास्तविकता है भी क्या या सब कुछ महज फंतासी है? फिर इस प्रश्न का पीछा करते हुए उसके वास्तविक जीवन में प्रवेश करते हैं। जहां मार्केस का बचपन रहस्य, रोमांच, जादुई कथाएं, फंतासी और ठोस सच्चाइयां है। एक तरफ हंसता – मुस्कुराता जीवन के भरपूर रंगों में सना जीवंत कोलम्बिया का अराकाटक शहर है तो दूसरी तरफ उसका उजाङ – वियावान डराबनी सूरत। एक तरफ अराकाटक का उत्कर्ष तो दूसरी तरफ उसका पतन।
एक तरफ नाना कर्नल निकोलस का हीरोइक यथार्थवादी, बहादुर और बेखौफ जीवन है तो दूसरी तरफ नानी की रहस्यमयी दुनिया। एक तरफ उसे नाना से  युद्धों, कब्जों, लङाइयों, घायलों और कब्रिस्तानों की कहानियां सुनने को मिलती है तो दूसरी तरफ नानी से भूत – प्रेत, अलौकिक किस्सों - कहानियों और मृतकों की कथाएं। प्रभात मार्केस के हवाले से लिखते हैं कि नाना – नानी की दो भिन्न संसारों की यथार्थवादी और जादुई छवियां ही उनकी ज्यादातर रचनाओं में अभिव्यक्त हुई है। तर्क और विश्वास का द्वंद्व ही उनकी रचनाओं की प्राणशक्ति है। वास्तविक और अवास्तविक का मिलन ही उपत्यका है।
‘लीफ स्टॉर्म’ और ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड’ में अराकाटक शहर का ही उत्थान और पतन दर्ज है। वन हंड्रेड... में मकोन्दों शहर अराकाटक की जगह आया है जो सारे लैटिन अमेरिका का रूपक बन हुआ है। प्रभात इस बात को भी रेखांकित करते हैं कि दोनों रचनाओं में अराकाटक एक तरह से अभिव्यक्त नहीं हुआ है। बल्कि दोनों के अफसाने जुदा – जुदा हैं। लेकिन मार्केस ने कोलम्बिया के इस शहर को ऐसा रचा कि नामालूम सा शहर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना गया। ऐसा शायद ही देखने को मिलता है कि लेखक की वजह से शहर अपनी पहचान बनाता है।
मार्केस का बचपन अपने नाना के यहां बीता। अराकाटक में। जो कि केले के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। बहुराष्ट्रीय निगमों के कारण यहां की दुनिया रंगीन और उत्कर्ष पर थी। युनाइटेड फ्रूट कंपनी के जाने के साथ ही शहर का रौनक चला गया। नाना की जिंदादिल हीरोइक आबाद दुनिया भी। नाना के मरने के वर्षों बाद जब मां के साथ मार्केस उस हवेली को बेचने आया था तो देख कर दंग रह गया कि चमकता – दमकता यह शहर सूखे पत्ते की खङखङ में बदल चुका है। जहां जोश से भरा जीवन था वहां अब वीरानी थी। उसी उत्थान – पतन और बर्बादी के फसाने को मार्केस ने अपनी रचनाओं में दर्ज किया है। पहला उपन्यास ‘लीफ स्टॉर्म’ उसी से संबंधित है। ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड’ में उसी का चरम दर्ज है।
‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड’ मार्केस की रचनात्मकता का ही नहीं बल्कि लैटिन अमेरिकी लेखक की रचनात्मकता की श्रेष्ठ उपलब्धि है। यही उनकी ख्याति का आधार। यह तो मार्केस को भी आभास था कि यही रचना गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकालेगा। प्रभात रंजन ने मार्केस के इस उपन्यास पर स्वतंत्र लेख लिखा है। जिसमें उन्होंने लेखन की शुरुआत, कठिनाई, प्रकाशन, अनुवाद से लेकर बेस्ट सेलर होने और श्रेष्ठ विश्व प्रसिद्ध लेखक होने तक की कथा को दर्ज किया है। रचनात्मक प्रक्रिया के अलावा जादुई यथार्थवाद को समझने – समझाने और उसकी प्रविधि को भी दर्ज किया है। प्रभात लिखते हैं – इस उपन्यास ने मार्केस नामक लेखक की तस्वीर नहीं बदली उसने विश्व साहित्य का मानचित्र बदल दिया। इस उपन्यास ने इतनी बङी विभाजक रेखा खींची इससे पहले किसी गैर – यूरोपीय लेखक ने नहीं खींची थी। कार्लोस फुएंतेस ने इस उपन्यास को लैटिन अमरीका का बाइबिल बताया। ल्योसा ने लैटिन अमरीकी वीरता का महान उपन्यास।
जिन दिनों मार्केस इस रचना को लिख रहा था उन दिनों उसके पास घर  चलाने का खर्च नहीं था। प्रकाशक को पांडुलिपि भेजने के लिए उसकी पत्नी ने हेयर ड्रायर और हीटर तक बेच डाला। बाकी चीजें पहले ही बिक चुकी थी। लेकिन इसी रचना ने उन्हें समृद्ध बना दिया। प्रभात लिखते हैं इस जातीय ‘आचंलिक’ उपन्यास की ताकत इसकी जीवंतता है, लैटिन अमेरीकी जीवन जीवन का वह पहलू जिसके बारे में बाहर के लोग बहुत कम जानते थे। वे वहां की संगीत, मस्ती, जिजीविषा आदि का जिक्र करते हुए बताते हैं कि यह योरोपीय ढंग के जीवन की प्रतिकथा कहती है। आधुनिकता के सामने परास्त नहीं होती है। बल्कि बेपरवाह अपने विश्वासों और मान्यताओं से चिपकी रहती है। पश्चिमी सभ्यता के दमन और औपनिवेशिक दासता के महाआख्यान को भी रचती है। और अपनी जङों में धंसे होने की महागाथा को भी। प्रभात यहां मैला आंचल का जिक्र करना नहीं भूलते जो महान रचना होकर भी हिन्दी भाषा और अनुवाद की समस्याओं के कारण विश्वस्तरीय ख्याति से वंचित रह गयी।
प्रभात प्रतिबद्ध और संघर्षशील पत्रकार को भी दिखाते हैं और एक सफल लेखक के सफरनामा को भी। वे ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’ को एक बदले हुए उपन्यास के तौर पर पाकर उसकी विशेषता का उल्लेख करते हैं। यह दिखाते हैं कि सत्ता, राजनीति, जातीय कथा, स्थानीय जादुई संस्पर्श से निकल अपनी बनी छवि को तोङते हुए मार्केस प्रेम की कोमल भावनाओं, वफा, त्याग और वादा प्रेम की गलियों से अपने को गुजारते हैं।
मार्केस की रचनाएं जितनी रोमांचक हैं, जीवन भी। बेहद नाटकीय। उतार – चढ़ाव से भरा। कभी अर्श पर कभी फर्श पर। प्रभात रंजन ने बेहद सधी, सीधी और आकर्षक भाषा में सबकुछ समेटा है। कहीं – कहीं दोहराव रस भंग करता है अन्यथा इस पुस्तक को उपन्यास, कहानी, जीवनी और आलोचना के खांचे में बांटे बगैर सबका मजा पाठक उठा सकता है।           
पुस्तक – मार्केस की कहानी
लेखक – प्रभात रंजन
प्रकाशक – प्रतिलिपि बुक्स, जयपुर
मूल्य – 250 रुपये